मंगलवार, 16 जून 2015

धर्म परिवर्तन क्यों?

धार्मिक एकता देश की शक्ति है। 
भारत एक बहुधर्मी लोकतांत्रिक देश है। इन धर्मों में वर्ग या व्यवस्था विभाजन ऐतिहासिक है। हिंदुओं में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र। मुस्लिम समुदाय में शिया और सुन्नी। ईसाइयों में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट। इन सभी धर्मों वैश्विक और क्षेत्रिय स्तर पर एक-दूसरे से सर्वोच्च बनने की होड़ मची हुई है। उपर उठने की होड़ में यह एक-दूसरे के धर्म की अलोचनाएं करते हैं व धार्मिक उलेमाओं पंडितों को नीचता का भाव दिखाते है। यह भी क्या करें? सबको अपना धर्म अच्छा लगता है, लेकिन मजबूत धर्म व सम्प्रदाय के लोग तथाकथित कमजोर धर्म को दबाने की कोशिश करते हैं व उन्हें अपना विकास करने के लिए रोकते हैं। भारतीय परिवेश में समय-समय पर लोग धर्म परिवर्तन करते रहे हैं।

मुगलों के शासन काल में मुस्लिम समुदाय के लोगों को कर नहीं देना पड़ता था इसलिए हिंदू वर्ण व्यवस्था के अनुसार निम्नवर्गीय हिंदू थे उन्होंने स्वेच्छा से इस्लाम कबूल कर लिया। और करें भी क्यों न? हिंदू व्यवस्था में निम्न समुदाय वालों को इंसान नहीं समझा जाता था, गांव से बाहर रहना पड़ता था, मुगल हुकुमत और मौसम की मार झेल रहे गरीब किसान कब तक खाने को मोहताज होते, ऐसी परिस्थितियों में धर्म परिवर्तन कर लिया कोई अपराध नहीं है।

भारत के 85 प्रतिशत मुसलमान पिछड़े वर्ग से आते हैं, जो कि हिंदू से मुसलमान बनें लेकिन व्यवसाय वहीं रहा जैसे अंसारी, कुरैशी, सैफी, मंसूरी, शक्का, सलमानी, उस्मानी, घोषी आदि पसमांदा कहलाये, लेकिन अपने विकास के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं। शायद यह ठीक भी था क्योंकि तत्कालिक समय में निम्न जातियों की जो दुर्दशा थी उनके पास धर्म परिवर्तन के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। यह इसलिए भी ठीक नहीं था कि कोई धर्म नहीं कहता है कि किसी की बहु-बेटी पर नजरे गड़ाओ, किसी भी प्राणी पर हथियार उठायो, घरो को लूटो-बर्बाद करों। तत्कालिक समय में हिंदुओं के सभी उच्च वर्गों में ये कुरीतियां तथा विचार विद्यमान थे।

ऐसा नहीं है कि धर्म परिवर्तन जैसे विचार स्वतंत्र भारत में समाप्त हो गए। स्वतंत्र में ऐसे विचार और ताजी से बढ़ें और जिसका सहयोग हमारे नेताओं भी किया। वे भले ही सामाजिक रूप से कुछ भी बोले लेकिन धर्मों के प्रति रूढ़ीवादिता बनीं रहीं। इंदिरा गांधी ने जब प. जवाहर लाल नेहरू के सामने फिरोज के शादी का प्रस्ताव रखा तो नेहरू ने इसलिए मना कर दिया कि वह मुस्लमान हैं, महात्मा गांधी को जब यह बात पता चली तो उन्हें फिरोज को अपना नाम दिया और फिर नेहरू को मजबूरी में मानना पड़ा। तब जाकर नेहरू ने इंदिरा गांधी के साथ फिरोज गांधी का विवाह हुआ।  डा. बाबासाहेब भीम राव आंबेडकर ने भी हिंदू धर्म में होने वाले अंधविश्वास और कुरीतियों से प्रभावित होकर अपने हजारों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म को अपनाया।

वर्तमान समय में धार्मिक संस्थाएं अपना धर्म अपनाने के लिए लोगों विभिन्न तरह के प्रलोभन व प्रोत्साहित कर रहे हैं। साथ ही शुरूआत में आर्थिक सहायता भी प्रदान करते है। गरीबी,शोषण और आर्थिक मंदी के व जीवन स्तर में सुधार करने के कारण भी लोग न चाहते हुए भी धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। हाल में भी लव जिहाद और घर वापसी जैसे विचारों का उदभव हुआ है। दोनों ही तरह के विचार और समस्याएं लोगों के बीच में तेजी से उभर कर आई हैं। धार्मिक संस्थाओं व संगठन आरोप लग रहे हैं। धार्मिक संस्थाएं लोगों से जबरन धर्म परिवर्तन करवा रही हैं। धार्मक संगठन पूरे भारत में लव जिहाद और घर वापसी की मुहिम चला रहै हैं। ऐसे में प्यार-मोहब्बत करने वालों के सामने समस्या आ रही हैं। प्रेमी जोड़े इनके शिंकजे में फंसते जा रहे हैं। शादी के बाद धर्म परिवर्तन और परिवार, समाजृ के अंधविश्वास और रूढ़िवादिता के कारण आपसी सहयोग और हिम्मत हार जाते हैं। परिवार वाले अपने-अपने धर्मों की वकालत करते हैं और कहते हैं कि अगर शादी करनी है तो एक त्यागो तथा दूसरे को अपनाओं अन्यथा जहर खाओ मर जाओं। जबकि हम सब एक धर्म निरपेक्ष भारत रह रहे हैं । जहां सभी धर्मों को बराबरी का दर्जा मिला हुआ है, लेकिन धार्मिक उन्माद में बहकर धार्मिक संस्थाएं सर्वोच्च बनने की कोशिश में अन्य धर्मों का अपमान करता जा रहा हैं।

मुहब्बत ने मुझे नास्तिक बना दिया है,
अब मुझे इस्लाम की जरूरत नहीं,
मेरे जिस्म की हर नस सूत बन गई है,
मुझे ब्राह्मण के जनेऊ की जरूरत नहीं है।